सोमवार, 16 जुलाई 2012

स्वर्गीय श्री श्रवण राही के चंद अशआर

श्रवण राही 

6 जनवरी 1945 को उत्तर प्रदेश के एटा ज़िले के ग्राम सोरा में जन्मे श्रवण राही 
गीत की उस संवेदना के रचनाकार थे जो कहीं गहरे तक उतर कर हृदय की कोमलतम शिराओं को 
हल्के से स्पर्श कर पूरे शरीर में एक सिहरन पैदा कर जाती है। स्नातकोत्तर तक शिक्षा प्राप्त 
कर आपने भारतीय सेना के माध्यम से देश की सेवा की। सादगी यदि मानव का रूप धर ले 
तो उसकी तस्वीर श्रवण राही जैसी होगी। बेहद आम होते हुए भी बेहद ख़ास शब्दावली 
में अपने विशेष तुकान्तों के साथ श्रवण राही के गीत सुनने वाले के चेहरे पर 
आश्चर्य और आह्लाद का एक मिश्रित भाव उत्पन्न करते थे।


राजमार्गों से लेकर मेहंदी लगी हथेलियों तक के गीत आपके रचना कर्म में सम्मिलित हुए। 

अनार के फूल जैसे अनोखे बिम्ब उठाकर आपने यह सिध्द किया कि आपके बिम्ब 
परम्परागत प्रतीकों के मोहताज नहीं हैं। भारत माता के स्वाभिमान के गीतों से लेकर 
मुफ़लिसी, बदनसीबी, जोश, उत्साह और संबंधों की संवेदना तक के गीत आपकी लेखनी से लिखे गए।
काव्य की इसी समर्पित सेवा के दौरान दिनाँक 22 मार्च 2008 को होली के 
एक कवि-सम्मेलन में कविता पढ़ने के लगभग 300-400 सेकेंड बाद आपने अंतिम साँस ली। 
आपके दो कविता संग्रह ‘आस्थाओं के पथ’ और ‘पीर की बाँसुरी’ प्रकाशित हुए। 
आपके आकस्मिक निधन पर एक श्रध्दांजलि ग्रंथ भी प्रकाशित हुआ। 
आपके नाम से श्रवण राही स्मृति न्यास की स्थापना की गई है 
जो काव्य के विकास के लिए निरंतर प्रयासरत है।



ज़माने में सभी को तो सभी हासिल नहीं मिलता
नदी की हर लहर को तो सदा साहिल नहीं मिलता
ये दिलवालों की दुनिया है अजब है दास्ताँ इसकी
कोई दिल से नहीं मिलता किसी से दिल नहीं मिलता




मेरे हाथों से मुँह तक का निवाला रोकने वालो
लहू होगा तो उबलेगा उबाला रोकने वालो
मैं सूरज हूँ अंधेरा चीर कर हर रोज़ निकलूंगा
मुझे क्या रोक पाओगे उजाला रोकने वालो



प्रेम के गीत लिख, व्याकरण पर न जा
मन की पीड़ा समझ, आचरण पर न जा
मेरा मन कोई गीता से कम तो नहीं
खोल कर पृष्ठ पढ़ आवरण पर न जा



स्वाभिमान अपना स्वाह मत करना
भीख लेकर निबाह मत करना
अपने गुलदान की सजावट को
सारा गुलशन तबाह मत करना



न रखना आँसुओं का बोझ मन पर मातरम् वन्दे
वतन के लाल मरते हैं वतन पर मातरम् वन्दे
वतन पर जान जाए तो ये जीवन धन्य हो जाए
ये ख़्वाहिश है कोई लिख दे क़फ़न पर मातरम् वन्दे



साभार : http://kavyanchal.com/navlekhan/?cat=119

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