गुरुवार, 19 जुलाई 2012

मिनाक्षी जिजीविषा की कविता 'स्त्री'



सुनो !
झाड़ू बुहारते हुए 
बीन लेना ,कचरे से 
छुट गयी काम की चीज़ों की तरह 
छुट गयी , अपनी कुछ इच्छाएं भी !
झूटे बर्तन साफ़ करते हुए 
सँभाल  लेना 
बर्तनों की चमक की तरह 
आँखों में कुछ सपने भी 
खाना बनाते हुए 
जीभ के स्वाद की तरह 
सहेज लेना स्मृति में 
कविता भी 
मैले कपडे पचिते हुए 
पसीने की महक की तरह 
बसा लेना रोम रोम में 
जिजीविषा भी 
 चूल्हा जलाते हुए ....
रख लेना कुछ चिंगारियां 
शब्दों की .....अपने सीने में ...
ताकि मिल सके उर्जा 
जीने के लिए ........


मीनाक्षी जिजीविषा 

हिंदी साहित्य में 'स्त्री विमर्शपरक' रचनओं के क्षेत्र में मीनाक्षी  जिजीविषा एक जाना माना नाम है.  
कविता, गज़ल, गीत और लघुकथा  विधाओं में रचना करने वाली मीनाक्षी का मानना है --
'कोमल ह्रदय की भावनाओं को जब अभिव्यक्ति का कोई और माध्यम न मिला
 तो वह मन कि कच्ची मिटटी से काव्य कोपलें बन खिली'.
इनके अनेक कविता संग्रह और एक लघु कथा संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं.
वर्तमान में भारतीय जीवन बीमा निगम में कार्यरत हैं.
संपर्क : 
मीनाक्षी जिजीविषा 
5/2 नजदीक सिटी थाना 
मोहल्ला कजियन 
हिसार-125001 (
हरियाणा )
फ़ोन 08901186300







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