सुनो !
झाड़ू बुहारते हुए
बीन लेना ,कचरे से
छुट गयी काम की चीज़ों की तरह
छुट गयी , अपनी कुछ इच्छाएं भी !
झूटे बर्तन साफ़ करते हुए
सँभाल लेना
बर्तनों की चमक की तरह
आँखों में कुछ सपने भी
खाना बनाते हुए
जीभ के स्वाद की तरह
सहेज लेना स्मृति में
कविता भी
मैले कपडे पचिते हुए
पसीने की महक की तरह
बसा लेना रोम रोम में
जिजीविषा भी
चूल्हा जलाते हुए ....
रख लेना कुछ चिंगारियां
शब्दों की .....अपने सीने में ...
ताकि मिल सके उर्जा
जीने के लिए ........
bahut khoob minakshi ji
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