रविवार, 13 अप्रैल 2014

जब सुधियों में शेष रह गयी.. (बैसाखी पर गीत)




याद मुझे अब भी आती है,
बैसाखी की वही पुरानी
तेरे-मेरे मधुर प्यार की
अनभूली-सी प्रेम कहानी.

बैसाखी के ढोल बजे थे
मेरे पास अचानक आकर
मेरे निश्छल गीत नेह के
छीन लिए मेरे अधरों से
तेरी कजरारी आँखों ने.
भींच लिया था फिर पलकों को
गीतों में ही छिप जाने को..... याद मुझे अब भी आती है

केसर की हलकी फुहार से
मौसम के इस नए वर्ष में
सतरंगी मेरे स्वप्नों को
जब तुमने अपने आँगन में
सजा लिए थे नेह भाव से
छिपा लिया था अपने मन में
एक रंग में लिथ जाने को..... याद मुझे अब भी आती है

नाच रही थीं फसलें सारी,
झूम रहे थे वन-वन उपवन
मेरे दिल के हर कोने में
जानी-सी तस्वीर प्यार की
छिपा दिया हौले-से आकार
तेरी भोली-सी सूरत ने
जीवन भर के बस जाने को....... याद मुझे अब भी आती है

अब भूली-सी याद रह गयी,
वह जीवन की मधुर बैसाखी
बीत गया सरसों का सावन
रूठ गए जब अपने सारे
अब कैसे आनंद मनाऊं
जब सुधियों में शेष रह गयी
बैसाखी की वही पुरानी
तेरे-मेरे मधुर प्यार की
अनभूली-सी प्रेम कहानी...... याद मुझे अब भी आती है

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