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डॉ प्रीत अरोड़ा
पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ़ से हिंदी साहित्य में पी-एच.डी. (हिन्दी )
विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में इनकी नारी विमर्शपरक रचनाओं का नियमित प्रकाशन
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माँ - एक मधुर
अहसास
मैं अकेली कहाँ ?
कोई तो है
जो मुझे पग -पग पर समझाती है ,
कभी प्यार से
कभी फटकार से ,
निराशा के घनघोर अंधकार
में ,
ज्योति की एक सुनहरी किरण
,
रास्ता दिखाती
पथ प्रदर्शन करती
मुस्कराती
ओझल हो जाती ,
पास न होकर भी
दिल के कितने करीब होती
है
जब -जब भी तुम्हें पुकारा
तो पाया
एक मधुर अहसास ,
सुख -स्पंदन
प्यार का अथाह सागर ,
निश्छल प्यार
जो कहती ... मै दूर कहाँ हूँ तुमसे ?
तुम मेरा प्रतिविम्ब हो
,
उठो ,छोड़ो निराशा
और आगे बढ़ो ...
मेरी प्रेरणा ,मेरी मार्ग -दर्शक
और कोई नहीं
मेरी माँ ही हैं.
माँ ! तुझे सलाम
“माँ"
कहते ही
याद आता
एक हँसता-मुस्कुराता चहेरा
तपते हदृय
पर,
बादल बन,बरस जाता
हर समस्या
का समाधान
होता माँ
के पास
न जाने
कैसे
वो सब
ये करती
सुबह जल्दी
उठती
सबकी पसन्दीदा
वस्तुएँ बनाती
सखी बन
मुझसे बतियाती
दुआएँ देती
प्रार्थना करती
ममता लुटाती
सर्वस्व वार देती
माँ
आज हमारे
बीच
न होकर
भी
कहीं आस-पास ही
है
जैसे
सूरज से
किरण
पेड़ से
छाया
जल से
तरंग
अलग नहीं
होती
वैसे माँ
हर पल
मेरे पास
ही है
आज माँ
के दिए संस्कार
ही
मेरा पथ-प्रदर्शन करते
“माँ ! तुझे सलाम
”
ईमेल---arorapreet366@gmail.com
ब्लॉग--http://merisadhna.blogspot.in/
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"jab jab bhi tumhe pukara to paya ek madhur ehsas sukh spandan pyar ka athah sagar nishchal pyar" sunder shabdo ko piroya hai maa roopi kavya mala men,bahwpooran, maramsparshi utkrist kavya rachnaen,badhai ho DR preet arora ji.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अमर जी
हटाएंmaa to maa hoti hai ...........bahut sunder
जवाब देंहटाएंGREATTTTTTTTT - BAHUT KHOOB - KEEPIT UP
जवाब देंहटाएंदोनों ही कवितायेँ हृदयस्पर्शी
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