वेदना
कैक्टसों की वे सुरक्षा कर रहे
जूही सुकोमल आज है पछता रही ।
अब न देती मदिर सौरभ रात की रानी यहाँ
गंध जहरीली हवा में बिन बुलाये आ रही ।
पी चुकी पिछली सदी है अर्थवत्ता शब्द की
बेतुके शब्दों की सेना आज कविता पा रही ।
वन्दिनी कविता बनी है आज खेमों में
है कला विकला बनी आज वह चिल्ला रही ।
मत करो कविता प्रदूषित अन्यथा पछताओगे
सयंमित हो भारती सबको यही बतला रही ।
यात्री से
इस सफ़र से यों नहीं घबराइए
सफ़र लम्बा मुस्कुराते जाइए ।
एक दिन गंतव्य भी मिल जायेगा
हर कदम आगे बढाते जाइए ।
आपके भी बाद जाएँ पर्यटक
राह के कंटक हटाते जाइए ।
सुरा महँगी और जहरीली हुई
आँख से मदिरा पिलाते जाइए ।
राह में बदबू प्रदुषण से भरी
प्यार का सौरभ बहाते जाइए ।
ध्यान रखें शत्रु कोई न बनें
मित्रता पर आजमाते जाइए ।
'सलिल' सब साधन यहाँ पाथेय है
हमसफ़र में कुछ लुटाते जाइए ।
डॉ बच्चन पाठक 'सलिल |
"mat kro kavita pardushit,anytha pachhtaoge,saymit ho bharti sabko yhi batla rhi" "vedna " aur "yatree se"dr salil ji dwara rachyit dono hi rachnaen bhawpooran aur behad khoobsurat hai,sunder likhne ke liye badhai ho salil ji.
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