प्रेम (डॉ हरीश अरोड़ा)
प्रेम में बंधन नहीं हैं
तुम उसे एहसास के नन्हें सजीले पंख देकर मुक्त कर दो
वह उडेगा
क्षण भर उडेगा
और फिर से लोट कर
स्नेह के बंधन तुम्हारे चूम लेगा।
देह के लघु खंड तो क्षण की शिला हैं
छू नहीं सकते
स्थिर हैं
ये तुम्हारे प्रेम की नव सर्जना में गदगद रहेंगे
मूक अभिनन्दन करेंगे
मूक अभिनन्दन करेंगे
वाह ! डॉ.साहब ...वाह .......बधाई !!
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