शनिवार, 14 जुलाई 2012

ग़ज़ल


लोकेश नशीने "नदीश" की गज़ल 

अपनी आँखों के आईने में संवर जाने दे
मुझे समेट ले आकर या बिखर जाने दे

मैं सोचकर यही आया था बज़्म में तेरी
ज़ख्म चाहत के दिखाऊंगा मगर जाने दे

मेरी नहीं है तो ये कह दे ज़िन्दगी मुझसे
चंद सांसें करूँगा क्या मुझे मर जाने दे

दर्द ही दर्द की दवा है लोग कहते हैं
दर्द कोई नया जिगर से गुजर जाने दे

यूँ नहीं होता है इसरार से हमराह कोई
गुजर जायेगा तनहा ये सफ़र जाने दे

ऐ नए दोस्त बसा लूं तुझे आँखों में मगर
अश्क़ की बूँद पुरानी तो ये झर जाने दे

'नदीश' आएगा कभी तो हमसफ़र तेरा
जहाँ भी जाये मुन्तज़िर ये नज़र जाने दे

लोकेश नशीने "नदीश"
रामनगर, रामपुर
जबलपुर (म.प्र.) भारत
ईमेल : lokesh.nashine@gmail.com

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